कांग्रेस पर लटकी ‘बोफोर्स’ घोटाले की तलवार! कानूनी नोटिस जारी करने की तैयारी में CID

नई दिल्ली । देश की राजनीति में 80 के दशक में ‘बोफोर्स’ घोटाले को लेकर भूचाल आ गया था। कांग्रेस पार्टी पर 1980 के दशक में भारतीय सेना के लिए खरीदी गई ‘बोफोर्स’ तोपों के कुल 1,437 करोड़ रुपये के लेनदेन में से 64 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया है। अब इस घोटाले के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अमेरिकी जासूस माइकल हर्शमैन की जांच के लिए केंद्रीय जांच विभाग के माध्यम से कानूनी नोटिस भेज ने की तैयारी की जा रही है।

इससे ‘भारतीय जांच एजेंसियों’ को जांच में फायदा होगा

दरअसल, हर्षमैन ने ‘भारतीय जांच एजेंसियों’ को ‘बोफोर्स’ घोटाले से जुड़ी जानकारी मुहैया कराने की इच्छा जताई थी। बोफोर्स घोटाले की जांच ‘केंद्रीय जांच विभाग’ के माध्यम से की जा रही थी। लंबे समय तक चलने वाली इस जांच में एक अमेरिकी जासूस माइकल हर्शमैन ने एक समाचार चैनल पर सार्वजनिक बयान दिया था कि उसके पास ‘बोफोर्स’ घोटाले के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी है और इससे ‘भारतीय जांच एजेंसियों’ को जांच में फायदा होगा। इसलिए अब इस मामले को सुलझाने के उद्देश्य से ‘केंद्रीय जांच विभाग’ के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका को हर्शमैन की जांच में सहयोग करने के लिए एक कानूनी नोटिस भेजा जाएगा।

1,437 करोड़ में से 64 करोड़ रुपये की रिश्वत की बात

उल्लेखनीय है कि 1980 के दशक में भारतीय सेना के लिए स्वीडिश कंपनी की ‘बोफोर्स’ हॉवित्जर तोपें स्वीडिश कंपनी से खरीदी गई थीं। राजीव गांधी सरकार के दौरान इस संबंध में एक हजार, 437 करोड़ का लेनदेन हुआ था। यह भी आरोप था कि 1,437 करोड़ में से 64 करोड़ रुपये की रिश्वत थी। स्वीडिश रेडियो भारतीय राजनेताओं और संबंधित अधिकारियों को रिश्वत देने की घोषणा करने वाला पहला रेडियो था। इसके बाद 1990 में ‘केंद्रीय जांच विभाग’ ने इस संबंध में मामला दर्ज किया।

वीपी . सिंह की भूमिकाओं के बारे में भी खुलासा किया

हालांकि खरीदी के बिचौलिए क्वात्रोची को भी 2011 में इसी मामले में बरी कर दिया गया था। साथ ही यह केस 2011 में ही बंद कर दिया गया था। लेकिन इस मामले में हर्षमैन ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में आरोप लगाया कि कांग्रेस ने ही इस मामले की जांच रोकने की कोशिश की थी। इसके अलावा उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, वी. पी . सिंह की भूमिकाओं के बारे में भी कुछ खुलासे किये गये हैं। पता चला है कि ‘बोफोर्स’ ‘ मामले में आगे की जांच में सहयोग के लिए हर्शमैन के संबंध में अमेरिका को ‘लेटर्स रोगेटरी’ भेजने का काम अक्टूबर से ही चल रहा है और अनुमान है कि यह प्रक्रिया अगले तीन महीनों में पूरी हो जाएगी।

लेटर्स रोगेटरी देश की अदालत

आपको बता दें कि लेटर्स रोगेटरी एक देश की अदालत द्वारा दूसरे देश की अदालत से किसी मामले की जांच करने या सहयोग करने का अनुरोध है। इसमें उचित प्रारूप ‘अंतर्राष्ट्रीय मामलों के कार्यालय’ से प्राप्त किया जाता है। उसके बाद उस मसौदे के आधार पर एक प्रति-मसौदा तैयार किया जाता है और अनुमोदन के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय मामलों के कार्यालय’ को भेजा जाता है। एक बार मंजूरी मिलने के बाद, मसौदे पर न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं। फिर इस मसौदे को ‘अंतर्राष्ट्रीय मामलों के कार्यालय’ के मार्गदर्शन के अनुसार प्रमाणित किया जाता है।

आवश्यकता पड़ने पर इसका संबंधित देश की भाषा में अनुवाद भी किया जाता है। बाद में ‘लेटर्स रोगेटरी’ को राजनयिक चैनलों के माध्यम से दूसरे देश की न्यायपालिका को भेजा जाता है।’ वहीं माइकल हर्शमैन के बारे में बताएं तो वे अमेरिका स्थित निजी खुफिया एजेंसी ‘फेयरफैक्स ग्रुप’ के प्रमुख हैं और ‘बोफोर्स’ मामले से जुड़े हैं। हर्षमैन ने 2017 में भारत में खुफिया एजेंसियों के सम्मेलन में भी भाग लिया था। उस समय उन्होंने विभिन्न मंचों के माध्यम से ‘बोफोर्स’ मामले पर प्रकाश डालने की कोशिश की थी।