बिहार में करारी हार के बाद RJD में टूट का दौर शुरू… तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections.) में करारी हार के बाद दल में टूट रोकना राजद (RJD) के लिए बड़ी चुनौती होगी। कभी पंद्रह वर्षों तक बिहार में राज करने वाले लालू प्रसाद (Lalu Prasad) ने दूसरे दलों को तोड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। आज जो दल (वामदल) उनके साथ हैं, उनके विधायकों को भी उन्होंने अपने पाले में कर लिया था। सपा और बसपा (SP and BSP) सहित अन्य दलों के विधायक भी तोड़े थे, लेकिन सत्ता से हटने के बाद राजद में भी टूट का दौर शुरू हो गया।
खासकर 2010 के विस चुनाव में शर्मनाक हार के बाद विधायक, विधान पार्षद और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दल छोड़ा था। इस चुनाव में भी पार्टी की शर्मनाक पराजय हुई है। ऐसे में दल को सुरक्षित रखना नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। राजद में सबसे बड़ी टूट 2014 में हुई थी। 14 फरवरी 2014 को राजद के 13 विधायकों ने पाला बदल लिया। इन 13 विधायकों को विस अध्यक्ष ने अलग समूह का दर्जा दे दिया। सभी विधायक जदयू के साथ चले गए थे।
जिन्होंने पाला बदलने संबंधी पत्र विस अध्यक्ष को दिया था उनमें फैयाज अहमद, रामलखन रामरमण, अख्तरूल इमान, चंद्रशेखर, डॉ. अब्दुल गफूर, ललित यादव, जितेन्द्र राय, अख्तरूल इस्लाम शाहीन, दुर्गा प्रसाद सिंह, सम्राट चौधरी, जावेद अंसारी, अनिरुद्ध कुमार और राघवेन्द्र प्रताप सिंह शामिल थे। उस समय राजद के 22 विधायक थे। लोकसभा चुनाव के पहले इस टूट से पार्टी को बड़ा झटका लगा था।
चुनाव के पहले कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ी
पिछली बार 2020 के विस चुनाव से पहले प्रेमा चौधरी, महेश्वर यादव, अशोक कुमार, चंद्रिका राय, फराज फातमी, जयवर्धन यादव, वीरेन्द्र कुमार सिंह जैसे कद्दावर चेहरे राजद छोड़ जदयू में शामिल हो गए थे। इसके बाद राजद के पांच एमएलसी दिलीप राय, राधा चरण सेठ, संजय प्रसाद, कमरे आलम और रणविजय सिंह ने भी पाला बदल जेडीयू का दामन थाम लिया।
यही नहीं, पिछले साल जब बिहार में सत्ता का हस्तांतरण हुआ तब पार्टी के पांच विधायकों ने पाला बदलकर सरकार का साथ दिया था। इस साल भी चुनाव के पहले पार्टी के दर्जनभर से अधिक वरिष्ठ नेता, विधायकों ने पाला बदला।
