कंथलूर: केरल की गोद में छिपा ‘कश्मीर’, जहाँ पहाड़, सेब के बगीचे और 60 साल पुरानी परंपराएँ आज भी ज़िंदा हैं
जब कंथलूर की ठंड जादू बिखेरती है
करीब 1,500 मीटर की ऊँचाई पर बसा यह इलाका दक्षिण भारत के उन चुनिंदा स्थानों में है, जहाँ सर्दियों में तापमान काफी गिर जाता है।
दिसंबर से फरवरी के बीच-
सुबह-सुबह पहाड़ियों पर चांदी-सी ओस,
हवा में धुंध की हल्की चादर,
और चारों ओर फैली ठंडक
इस जगह को बिल्कुल कश्मीर जैसा एहसास देती है। सर्दियों की छुट्टियाँ बिताने के लिए यह एक परफेक्ट हिल स्टेशन माना जाता है।
1962 से अब तक-कंथलूर में अब भी चलता है वस्तु-विनिमय (बार्टर सिस्टम)
कंथलूर की सबसे अनोखी पहचान है यहाँ की 60 साल पुरानी बार्टर परंपरा, जो आज भी वैसी ही चलती है जैसी 1962 में शुरू हुई थी।
गाँव की एक विशेष दुकान में लोग अपना उगाया हुआ सामान-
जैसे लहसुन, सरसों, अदरक, बीन्स, धनिया-
लाकर देते हैं और बदले में उन्हें चावल, दाल और रोज़मर्रा का समान दिया जाता है।
करीब 160 परिवार इसी प्रणाली पर निर्भर हैं। डिजिटल युग में भी यह परंपरा गाँव की आत्मनिर्भरता और आपसी भरोसे की मिसाल पेश करती है।
12 साल में एक बार नीले रंग में रंग जाता है पूरा कंथलूर
कंथलूर का एक और अद्भुत आकर्षण है-नीलकुरिंजी फूल।
यह फूल हर 12 साल में खिलता है और खिलने के बाद पूरी घाटी नीले रंग की चादर से ढक जाती है।
यह दुर्लभ दृश्य इतनी भीड़ खींचता है कि देश-विदेश से पर्यटक इसे देखने आते हैं।
2018 में आखिरी बार नीलकुरिंजी खिले थे, इसलिए अगला मौका 2030 में मिलेगा।
एक समय पर स्थानीय जनजातियाँ अपनी उम्र भी नीलकुरिंजी के खिलने के चक्र से गिनती थीं!
क्यों कहा जाता है कंथलूर को ‘केरल का कश्मीर’
क्योंकि पूरे केरल में सेब की खेती सिर्फ यहीं होती है।
ठंडी जलवायु और अनोखी मिट्टी यहाँ सेब को खास स्वाद देती है।
इसके अलावा यहाँ-
स्ट्रॉबेरी
संतरा
आड़ू
और कई तरह के फल
बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं।
पर्यटक बागों में जाकर खुद पेड़ों से फल तोड़ने का आनंद भी ले सकते हैं।
चंदन के जंगल और ‘लिक्विड गोल्ड’ की महक
कंथलूर और इसके पास स्थित मरयूर क्षेत्र चंदन के प्राकृतिक जंगलों के लिए प्रसिद्ध है।
यहाँ के चंदन के पेड़ों की सुरक्षा सरकार करती है।
चंदन का तेल, जिसे लोग लिक्विड गोल्ड कहते हैं, इन जंगलों की पहचान है।
यहाँ की हवा में फैली चंदन की खुशबू माहौल को दिव्य बना देती है।
कंथलूर में घूमने लायक प्रमुख जगहें
चिन्नार वाइल्डलाइफ सेंचुरी – ट्रैकिंग, वाइल्डलाइफ और झरनों का रोमांच
अनामुडी शोला नेशनल पार्क – घने जंगलों और क्लाउड फॉरेस्ट का अनुभव
मुनियारा डोलमेंस – लगभग 3000 ईसा पूर्व के विशाल पत्थर कक्ष
ऑर्गेनिक फार्म और फल बगीचे – सेब, स्ट्रॉबेरी, संतरा तोड़ने का अनोखा अनुभव
क्योर मठ – चंदन के पेड़ों के बीच शांति का अद्भुत एहसास
कंथलूर जाने का सबसे अच्छा समय
सितंबर से मार्च
खासकर दिसंबर–जनवरी में यहाँ की ठंड दक्षिण भारत में कहीं और नहीं मिलती।
कैसे पहुँचें?
सबसे नजदीकी एयरपोर्ट: कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट
नजदीकी रेलवे स्टेशन: अलुवा और थ्रिशूर
वहाँ से टैक्सी या बस से कंथलूर पहुँचा जा सकता है।
अगर आप भीड़भाड़ से दूर प्रकृति की गोद में एक शांत, ठंडी, अनोखी और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जगह की तलाश में हैं, तो कंथलूर आपके सफर की सबसे यादगार मंज़िल बन सकती है।
