‘वंदे मातरम्’ पर संसद में BJP ने विपक्ष को नया चैलेंज, ममता बनर्जी के लिए सियासी उलझन
बीजेपी इसे चुनावी अवसर की तरह देख रही है, जबकि ममता के लिए यह धर्म और सियासत दोनों का संकट बन सकता है। राज्यसभा में बुलेटिन में सांसदों को ‘जय हिंद’ और ‘वंदे मातरम्’ का इस्तेमाल न करने की हिदायत से ममता नाराज़ हुई थीं। उनका कहना था:
“क्यों नहीं बोलेंगे? जय हिंद और वंदे मातरम् हमारा राष्ट्रीय गीत है… ये हमारी आजादी का नारा है।”
लेकिन बीजेपी नेताओं का दावा है कि ममता अपने मुस्लिम वोट बैंक को नाराज़ किए बिना इस पर खुलकर स्टैंड नहीं ले रही हैं।
बंकिम चंद्र चटर्जी की स्मृति और लाइब्रेरी विवाद
वंदे मातरम् के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी की पुण्यतिथि और गीत के 150 साल पूरे होने पर बीजेपी ने कोलकाता में कई कार्यक्रम आयोजित किए।
5, प्रताप चटर्जी स्ट्रीट स्थित बंकिम चंद्र स्मृति लाइब्रेरी का रखरखाव खराब स्थिति में है।
विपक्ष नेता शुभेंदु अधिकारी को लाइब्रेरी का गेट बंद मिलने के कारण कार्यक्रम से लौटना पड़ा।
बंगाल बीजेपी अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर लाइब्रेरी का नियंत्रण केंद्र के हाथ में लेने की मांग की।
बंकिम चंद्र के वंशज सजल और सुमित्रा चटर्जी भी लाइब्रेरी की उपेक्षा पर नाराज़ हैं और बीजेपी का समर्थन कर रहे हैं।
टीएमसी का कहना है कि लाइब्रेरी की प्रबंधन समिति पहले से ही सीपीएम की रही है, और लेफ्ट सरकार की लापरवाही के कारण रखरखाव में कमी है।
हुमायूं कबीर और मुस्लिम वोटर का चुनावी प्रभाव
टीएमसी ने हुमायूं कबीर को पार्टी से सस्पेंड किया। कबीर ने इसके बाद नई पार्टी बनाने और AIMIM के ओवैसी के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान किया।
कबीर ने मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर नई मस्जिद की नींव रखकर इसे “मुसलमानों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई” बताया।
ममता बनर्जी के लिए यह और मुश्किल है क्योंकि बीजेपी इसे वोट बैंक और धार्मिक मुद्दों के जरिए चुनावी फायदा लेने का मौका मान रही है।
वंदे मातरम् का ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्व
वंदे मातरम्, बंकिम चंद्र चटर्जी की रचना है (1875), जो आनंदमठ उपन्यास का हिस्सा है।
भारत गणराज्य ने इसे 1950 में राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया।
7 नवंबर 2025 को इसके 150 साल पूरे होने पर केंद्र सरकार ने विशेष सिक्का और डाक टिकट भी जारी किए।
बीजेपी नेता अमित मालवीय का कहना है कि ममता बनर्जी राजनीतिक नौटंकी कर रही हैं और अपने मुस्लिम वोट बैंक को नाराज़ किए बिना वंदे मातरम् या जय हिंद बोलने की हिम्मत नहीं कर रही हैं।
ममता बनर्जी की दुविधा
वंदे मातरम् पर सपोर्ट या विरोध, दोनों ही ममता के लिए समय और सियासत का जटिल मामला है:
अगर समर्थन करें → मुस्लिम वोट बैंक नाराज़ हो सकता है।
अगर विरोध करें → बंगाली समुदाय और बंकिम चंद्र के समर्थक नाराज़ हो सकते हैं।
बीजेपी इस स्थिति का चुनावी फायदा लेने के लिए पूरी तरह तैयार है।
