मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2025: सत्यनारायण पूजा से लेकर स्नान-दान तक, जानें आज का पूरा महत्व और शुभ मुहूर्त
नई दिल्ली । मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2025 आज श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है। इस दिन सत्यनारायण पूजा स्नान-दान और व्रत से सौ गुना पुण्य तथा लक्ष्मी-नारायण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2025 हिंदू धर्म के सबसे पावन पर्वों में से एक मानी जाती है, जिसे आज पूरे देश में श्रद्धा, भक्ति और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। यह तिथि भगवान विष्णु मां लक्ष्मी और भगवान सत्यनारायण को समर्पित होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन स्नान दान, मंत्र-जप और सत्यनारायण पूजन से साधारण दिनों की तुलना में कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
सत्यनारायण पूजा का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषीय गणना के मुताबिक आज भगवान सत्यनारायण की विशेष पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक है। इसके अतिरिक्त शाम को 5 बजकर 21 मिनट से 5 बजकर 49 मिनट तक का समय भी पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
स्नान-दान का शुभ समय
पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य के लिए सुबह 6 बजकर 54 मिनट से 9 बजकर 51 मिनट तक का समय सबसे उत्तम बताया गया है। इस दौरान श्रद्धालु गंगा यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान कर दान करते हैं और पुण्य फल की कामना करते हैं।
क्यों खास है मार्गशीर्ष मास
मार्गशीर्ष मास का हिंदू धर्म में विशेष आध्यात्मिक महत्व है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है मैं महीनों में मार्गशीर्ष हूं जिससे इस महीने की पवित्रता और भी बढ़ जाती है। माना जाता है कि इस महीने में की गई साधना जप तप और दान का प्रभाव शीघ्र फल देता है।
सत्यनारायण पूजा और व्रत की विधि
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भक्त प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं, व्रत का संकल्प लेते हैं और भगवान विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की विधि-विधान से पूजा करते हैं। कई श्रद्धालु पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हैं जबकि कुछ फलाहार व्रत करते हैं। संध्या समय सत्यनारायण व्रत कथा का श्रवण करना अनिवार्य माना गया है।
दान-पुण्य का विशेष महत्व
दान-पुण्य का विशेष महत्व
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दान-पुण्य के लिए भी अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन अन्न, वस्त्र तिल घी सोना और धन का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। कई जगहों पर गौ-दान की परंपरा भी निभाई जाती है, जिसे अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है।
पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान
इस तिथि पर पितरों के लिए तर्पण और पिंड-दान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन तर्पण करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और परिवार पर अपना आशीर्वाद बनाए रखते हैं, जिससे वंश में सुख-शांति और उन्नति बनी रहती है।
पुराणों में वर्णित महत्व
नारद पुराण और स्कंद पुराण में मार्गशीर्ष पूर्णिमा के महत्व का विशेष उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार इस दिन किया गया प्रत्येक पुण्य कर्म सौ गुना फल देता है। यही कारण है कि यह तिथि साधकों और भक्तों के लिए आध्यात्मिक उन्नति का श्रेष्ठ अवसर मानी जाती है।
चंद्र दर्शन का धार्मिक महत्व
पूर्णिमा की रात चंद्र दर्शन कर भगवान को अर्घ्य देना अत्यंत शुभ माना गया है। चंद्रमा मन और भावनाओं का कारक ग्रह है, इसलिए उसका पूजन करने से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का आध्यात्मिक संदेश
कुल मिलाकर मार्गशीर्ष पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि ईश्वर से जुड़ाव और परोपकार का भी दिन है। इस दिन सत्यनारायण पूजन दान-पुण्य और पितृ तर्पण के माध्यम से भक्त अपने जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य और सकारात्मक बदलाव की कामना करते हैं।
