कोर्ट के पूर्व जजों का पत्र: पीएम मोदी और राहुल को दिया आमने-सामने बहस का न्योता

नई दिल्ली। क्‍या ऐसा हो सकता है? या संभव है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के दो पूर्व जजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पत्र लिखकर लोकसभा चुनाव के मुद्दों पर आमने-सामने सार्वजनिक बहस करने का न्योता दिया है। इस पत्र पर वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने भी हस्ताक्षर किए हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी लोकुर और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एपी शाह ने पत्र में लिखा है कि इस बहस से एक मिसाल कायम होगी और लोग दोनों नेताओं का पक्ष सीधे जान सकेंगे। इससे दोनों को लाभ होगा।

चिट्ठी में बताया गया है कि दुनिया भारत के चुनाव पर उत्सुकता से नजर रखती है, ऐसे में बेहतर होगा कि जनता दोनों पक्षों के सवाल-जवाब सुने। इससे हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत मिलेगी। पत्र में दोनों पक्षों को इस बहस का न्योता स्वीकार करने की अपील की गई है और साथ ही बहस की जगह, अवधि, प्रारूप और मॉडरेटर सभी का चयन परस्पर सहमति से तय करने की बात कही गई है। गैर हाजिरी की स्थिति में दोनों नेताओं से अपना प्रतिनिधि भेजने की बात भी पत्र में है।

पत्र में प्रधानमंत्री की तरफ से आरक्षण, धारा 370 और संपत्ति के पुनर्वितरण पर तो वहीं कांग्रेस की तरफ से संविधान पर संभावित हमले, चुनावी बॉन्ड योजना और चीन के मुद्दों का जिक्र है। साथ ही कहा गया है, दोनों पक्षों ने इन मुद्दों पर अबतक सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप ही लगाए हैं। इनसे जनता को कोई स्पष्ट और सार्थक जवाब नहीं मिल पाया है। आज के डिजिटल दौर में गलतबयानी, झूठी खबर और खबरों के साथ हेरफेर संभव है। ऐसे में आम जनता को इन बहसों के सभी पक्षों के बारे में जानकारी देना बेहद जरूरी है ताकि वोट देते वक्त वे सही चुनाव कर सकें।

जस्टिस मदन बी लोकुर सुप्रीम कोर्ट के उन चार जजों में शामिल थे जिन्होंने पद पर रहते हुए देश के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ सार्वजनिक रूप से प्रेस वार्ता कर सनसनीखेज आरोप लगाए थे। यह इन जजों का अभूतपूर्व फैसला था क्योंकि इस प्रेस वार्ता से सुप्रीम कोर्ट में जजों के बीच की खाई पूरे देश के सामने आ गई थी।

इन पूर्व जजों का आरोप था कि चीफ जस्टिस दूरगामी महत्व वाले केसों की सुनवाई कुछ चुनिंदा पीठों को ही सौंप रहे हैं। मद्रास और दिल्ली उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश रहे एपी शाह को उनके कार्यकाल के दौरान भी एक्टिविस्ट जज माना जाता था। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर करना उनका ऐतिहासिक फैसला था। यह धारा अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध करार देती है। पत्र लिखने वालों में शामिल एन. राम संपादक रहे हैं और वर्तमान केंद्र सरकार के कड़े आलोचकों में शामिल हैं।