Coldrif Cough Syrup Case: MP में कोल्ड्रिफ कफ सिरप से 17 मासूमों की मौत, मामले में NHRC सख्त
नई दिल्ली । मध्य प्रदेश में तमिलनाडु में बने कफ सिरप की एक जहरीली खेप ने हड़कंप मचा दिया है। सोमवार को छिंदवाड़ा की तामिया जूनापानी निवासी नवीन डेहरिया की डेढ़ साल की बेटी की मौत के साथ ही इस सिरप से प्रभावित बच्चों की संख्या 17 पहुंच गई। मासूम का इलाज नागपुर के मेडिकल कॉलेज में चल रहा था, लेकिन बचाया नहीं जा सका। यह घटना प्रदेश में भारी चिंता और गुस्से का कारण बनी हुई है।
उल्लेखनीय है कि ‘कोल्ड्रिफ’ नामक इस कफ सिरप में डायथिलीन ग्लायकॉल की मात्रा 48.6 प्रतिशत पाई गई है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। इस जहरीली दवा के सेवन से बच्चों की किडनी फेल होने की घटनाएं सामने आई हैं। इस घातक रसायन के चलते स्वास्थ्य और सुरक्षा के नियमों में कितनी गंभीर अनदेखी हुई, इसका खुलासा अब पुलिस और प्रशासन की जांच में हो रहा है।
तमिलनाडु सरकार ने लगाई रोक
तत्काल कार्रवाई करते हुए तमिलनाडु सरकार ने 3 अक्टूबर को श्रेसन फार्मा कंपनी में इस सिरप के उत्पादन पर रोक लगा दी। वहीं, मध्य प्रदेश पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) तमिलनाडु रवाना हो चुकी है। एसआईटी फैक्टरी में जाकर उत्पादन प्रक्रिया, रासायनिक सामग्री और लापरवाही की जांच करेगी। छिंदवाड़ा के पुलिस अधीक्षक अजय पांडे ने बताया कि जांच में यह पता लगाया जाएगा कि किस चरण में गड़बड़ी हुई और किसकी भूमिका थी। इसके बाद एफआईआर में नई धाराएं जोड़ी जाएंगी और आरोपितों की संख्या बढ़ सकती है।
सैंपलिंग नहीं और जांच रिपोर्टों में विलंब
घटना प्रशासनिक सुस्ती को भी उजागर करती है। पहली मौत 4 सितंबर को हुई थी, लेकिन कार्रवाई में देरी की वजह से मामला बढ़ता गया। तब जाकर प्रशासन ने न केवल उत्पादन पर रोक लगाई बल्कि संबंधित अधिकारियों को निलंबित किया। सोमवार को राज्य सरकार ने ड्रग कंट्रोलर दिनेश कुमार मौर्य को पद से हटा दिया, जबकि डिप्टी ड्रग कंट्रोलर शोभित कोष्टा, छिंदवाड़ा के औषधि निरीक्षक गौरव शर्मा और जबलपुर के औषधि निरीक्षक शरद कुमार जैन को निलंबित किया गया। इन अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने सिरप की बिक्री पर समय पर रोक नहीं लगाई, पर्याप्त सैंपलिंग नहीं की और जांच रिपोर्टों में विलंब किया।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सख्त
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने भी इस मामले पर गंभीर संज्ञान लिया है। आयोग ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी कर बच्चों की मौतों की जांच और संदिग्ध दवाओं की बिक्री पर तत्काल रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, औषधि नियंत्रक जनरल और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) को भी देशभर में नकली दवाओं की गहन जांच करने और सभी क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं को संदिग्ध दवाओं के नमूने जमा कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिए गए हैं।
NHRC सदस्य ने क्या कहा
एनएचआरसी सदस्य प्रियंक कानूनगो ने कहा, “देशभर में कफ सिरप से बच्चों की मौत की यह गंभीर घटना है। सभी संबंधित राज्य सरकारों को संदिग्ध कफ सिरप की बिक्री तुरंत रोकने और जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। दोषियों और लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
इस संकट के बाद अन्य राज्यों ने भी सतर्कता दिखाई। हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकारों ने कोल्ड्रिफ सिरप की बिक्री पर रोक लगाई। झारखंड सरकार ने रेस्पीफ्रेश और रिलिफ कफ सिरप जैसे अन्य ब्रांड्स पर भी प्रतिबंध लगाया।
मामले में सीएम डॉ. मोहन यादव सख्त
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हालात की गंभीरता को देखते हुए अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर परासिया पहुंचकर पीड़ित परिवारों से मुलाकात की। उन्होंने कहा, “यह दुख केवल प्रभावित परिवारों का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश का है। आपके बच्चों का दुख मेरा भी है। दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।” मुख्यमंत्री ने मौके पर कई सख्त फैसले किए और जिम्मेदारों को तत्काल उनके पद से हटाने के आदेश दिए।
विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि भारत सरकार के डीसीजीआई और सीडीएससीओ ने पहले ही स्पष्ट किया था कि क्लोरफेनिरामिन मेलिएट और फिनाइलएफ्रिन एचसीआई का संयोजन चार वर्ष से कम उम्र के बच्चों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और लेबल पर चेतावनी अनिवार्य है। श्रेसन फार्मा ने इन नियमों की अवहेलना की, जिससे यह त्रासदी घटी।
एसआईटी की जांच रिपोर्ट का इंतजार
अब सभी की निगाहें एसआईटी की जांच के परिणामों पर टिकी हैं। जांच के बाद ही यह साफ होगा कि उत्पादन में कितनी लापरवाही हुई, किन अधिकारियों और कंपनी कर्मियों की भूमिका रही, और दोषियों को सजा कैसे दी जाएगी। इस घटना ने बच्चों की सुरक्षा और दवा उद्योग में निगरानी की आवश्यकता को एक बार फिर उजागर किया है।
मध्य प्रदेश में जहरीले कफ सिरप की इस त्रासदी ने पूरे देश को झकझोर दिया है। मासूमों की मौत ने प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और औषधि उद्योग के तमाम पहलुओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब यह मामला केवल एक जांच का विषय नहीं है, बल्कि यह बच्चों की सुरक्षा, कानून का पालन और जिम्मेदार प्रशासन की कसौटी बन गया है।
