क्यों न ओवैसी की संसद सदस्यता रद्द कर दी जाए ? उठी मांग
-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
नई दिल्ली । ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख एवं हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार 25 जून को सांसद पद की शपथ लेने के दौरान ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा लगा कर एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। वैसे सांसद ओवैसी अपने वक्तव्य से सदैव विवादों में रहना चाहते हैं, क्योंकि इन विवादित वक्तव्यों का उन्हें राजनीतिक लाभ मिलता है किंतु इस बार बात सिर्फ विवाद में रहने के लिए ‘जय फिलिस्तीन’ कहने भर की नहीं है, बात भारत की गणराज्य के रूप में संप्रभुता एवं उसके प्रति एक सांसद के रूप में अपनी प्रतिबद्धता की भी है। यही कारण है कि देश भर में उनके इस आचरण का विरोध हो रहा है। राजनेताओं, आमजन, सामाजिक लोगों के साथ कानून के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि राष्ट्रपति चाहें तो उनके इस व्यवहार के लिए संसद सदस्यता भी रद्द कर सकती हैं।
दरअसल, सांसद औवेसी ने सदन में फिलिस्तीन के पक्ष में नारा लगाकर सभी हदें पार कर दी हैं । भारत के लोकतांत्रिक मंदिर में सांसद शपथ ग्रहण के दौरान उनका यह आचरण उनकी प्रतिबद्धता को भारत के संदर्भ में न दर्शाते हुए इस्लामिक गणराज्य जिसको कि अभी कुछ ही देशों से एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता मिली है, उस फिलिस्तीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाती हुई दिखाई देती है। यह कहना है देश के ज्यादातर आम नागरिकों का । वहीं अब इस मामले को लेकर राष्ट्रपति से शिकायत भी की जा चुकी है।
भारत की संसद में किसी दूसरे देश का जयकारा पहली बार लगा
जाट एसोसिएशन का कहना है ‘‘ भारत देश की संसद में किसी दूसरे मुसलमान देश का जयकारा पहली बार लगाया गया है, पर इस बात से विपक्ष को वोट करने वाले हिंदुओं को क्या? उनको तो सिर्फ सरकारी नौकरी और अपनी जाति का सांसद चाहिए था ! धन्यवाद ओवैसी ! विपक्ष के करोड़ों हिंदुओं के गाल पर तमाचे मारने के लिए ।’’ औवेसी के इस वक्तव्य पर आपत्ति यहां तक आ रही है कि लोग तरह-तरह के कमेंट सोशल मीडिया में लिख रहे हैं और सामने से अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने इस पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है, उन्होंने कहा है ‘‘ओवैसी जैसे नेता तो संसद में भी जय फिलिस्तीन बोलेंगे किन्तु जब भारत माता की जय की बात आए तो इस्लाम का हवाला दे कर ना तो वे स्वयं बोलेंगे और ना ही भारत के शेष मुसलमानों को बोलने देंगे..!! दोगलेपन की भी हद है।’’ बंसल का कहना है, ‘‘पहले ही दिन … संसद भारत की और जयकारा फिलस्तीन का…!! इनकी तो भला फितरत ही ऐसी है!! कोई बताए कि इन्हें भाग्यनगर ने जिताकर भारत का सांसद बनाया है, ना कि फिलस्तीन का। और यदि आतंकियों की पैरोकारी का इतना ही शौक है तो वहाँ जाकर अपने जिहादी भाईजानों को 72 हूरों से मिलवाएं किन्तु भारत का वातावरण खराब ना करें।”
इसके साथ ही वे यह भी प्रश्न करते हैं कि ‘‘ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102, खंड (डी) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि संसद का कोई निर्वाचित सदस्य किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा की घोषणा करता है, तो उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। इंग्लैंड के बैरिस्टर को क्या इतना भी पता नहीं था! बात बात पर संविधान की दुहाई देने वाले सांसद ओवैसी को इस संवैधानिक प्रावधान के अंतर्गत अयोग्य क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए?’’ इस संबंध में श्री बंसल ने आवश्यक दस्तावेजों को भी सार्वजनिक किया है।
बाबा साहब की थीसिस “थॉट्स ऑन पाकिस्तान’’ सभी को पढ़ना चाहिए
यहां एक ने लिखा, आपके द्वारा भारतीय संविधान की शपथ लेने के दौरान “जय फ़िलिस्तीन” कहने पर लोकसभा के सभापति/प्रोटेम स्पीकर, संसदीय कार्य मंत्री, तमाम कैबिनेट मंत्री, विभिन्न दलों के सांसद और लोकसभा सचिवालय के अधिकारियों को कोई समस्या नहीं है,…जिनको सबसे पहले दिक़्क़त होनी चाहिए, जो संविधान के रक्षक पदों हैं, वही मौन हैं तो मैं तो एक मामूली नागरिक हूँ। आप संविधान के जानकार होकर बोल गए, बाकी सब ख़ामोश रहे तो मैं किससे शिकायत करूँ? सवाल सिर्फ़ ये है कि जय फ़िलिस्तीन कल जय चीन या जय पाकिस्तान बन…क्योंकि जब एक बार परंपरा हो गई संसद में दूसरे देश की जय बोलने की, तो मामला यहीं नहीं रुकेगा। इस बारे में बाबा साहब ने अपनी थीसिस “थॉट्स ऑन पाकिस्तान” में एक पूरा अध्याय लिखा है कि भारत में ये समस्या आएगी। राष्ट्र बड़ा या धर्म? दिक़्क़त ये है कि लोग बाबा साहब की फ़ोटो लगाकर और जय भीम बोलकर अपना काम पूरा कर लेते हैं। बाबा साहब का राष्ट्र संबंधी मूल लेखन स्कूली सिलेबस यानी पाठ्यक्रम में होना चाहिए। हर बच्चे को पढ़ना चाहिए। इसी तरह के औवेसी को लेकर कई विरोध स्वरूप बातें मीडिया में कही जा रही हैं। सभी का एक मत से मानना है कि भारतीय संविधान की बार-बार दुहाई देनेवाले बैरिस्टर ओवैसी हकीकत बाहर आ रही है, आखिर उनके मन में चलता क्या है?
राष्ट्रपति से की गई औवेसी की शिकायत
सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु से शिकायत करते हुए यह मांग की गई है कि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की संसद सदस्यता रद्द की जाए। उन्होंने कहा, ‘‘भारत के राष्ट्रपति के समक्ष श्री असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 और 103 के तहत शिकायत दर्ज कराई गई है, जिसमें उन्हें संसद सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराने की मांग की गई है।’’
इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट एवं मध्य प्रदेश जबलपुर हाईकोर्ट में प्रेक्टिस कर रहे एडवोकेट आशुतोष कुमार झा का कहना है कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद 102 में संसद सदस्यता के लिए अयोग्यताओं के बारे में विस्तार से दिया गया है, जिसमें साफ लिखा हुआ है कि (1) कोई व्यक्ति संसद के किसी भी सदन का सदस्य चुने जाने और सदस्य होने के लिए अयोग्य होगा- (ए) यदि वह भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, जो संसद द्वारा विधि द्वारा घोषित किसी ऐसे पद को छोड़कर, जिसके धारक को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।
(बी) यदि वह विकृत चित्त का है और सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया है।
(सी) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है।
(डी) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है, या उसने स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर ली है, या किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुपालना की स्वीकृति के अधीन है।
(इ) यदि वह संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत या उसके द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। अत: संविधान के अनुच्छेद 102 में वर्णित कॉलम (डी) उपबंध के आधार पर ओवैसी की संसद सदस्यता को अयोग्य घोषित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अब सोचने वाली बात यह है कि ना तो शपथ के दौरान सदन में (फिलिस्तीन) कोई चर्चा का विषय था और ना ही इसराइल और फिलीस्तीन के बीच जो चल रहा है उस पर सम्वेत सदन में कोई चर्चा चल रही थी, ऐसे में औवेसी के द्वारा फिलिस्तीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाने का औचित्य क्या था ? यह समझ के परे है।
एडवोकेट आशुतोष कुमार का कहना यह भी रहा, यदि यह चर्चाओं में बने रहने, विवादों को जन्म देने और यह बताने के लिए भी कि वही (औवेसी) देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी मुसमानों के पैरोकार हैं, वह इस्लाम के सबसे बड़े रहनुमा हैं, तब भी इस मामले का भारतीय संसद से कोई लेना देना नहीं बनता है। ऐसे में संविधान में दिया गया यह प्रावधान उनकी संसद की सदस्यता रद्द करने के लिए पर्याप्त है। हालांकि शपथ के बाद प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब ने चेयर से कहा कि ओवैसी की शपथ का मूल पाठ ही रिकार्ड में लिया जाएगा। बाकी अन्य सभी बातों को हटा दिया जाए। इसके बाद हुआ भी यही, किंतु औवेसी ने जो बोला वह ऑनलाइन वीडियो रिकार्ड एवं अन्य मीडिया संस्थानों में मौजूद है। जिसे देखकर राष्ट्रपति महोदय स्वयं इसे संज्ञान में लेकर इस पर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं।
अपनी गलती मानने को तैयार नहीं औवेसी
दूसरी ओर स्वयं एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी हैं जोकि अब भी अपनी गलती को मानने को तैयार नहीं हैं। शपथ के बाद उठे विवाद को लेकर ओवैसी का कहना यही है कि उन्होंने सदन में जय फिलिस्तीन कहा है। ‘‘अलग-अलग सदस्यों ने अलग-अलग बातें कही हैं। मैंने भी जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना और जय फिलिस्तीन कहा। इसमें गलत क्या है? मुझे संविधान के प्रावधान बताएं। महात्मा गांधी की फिलिस्तीन को लेकर क्या कहा था? ये भी बताया जाना चाहिए।’’
आगे क्या ?
अब यदि इस पूरे प्रकरण में लोकसभा स्पीकर संसद सदस्य असदुद्दीन ओवैसी की नारेबाजी को आचार समिति के पास जांच के लिए भेज देते हैं तब जरूर उनकी सदस्यता पर खतरा हो सकता है। क्योंकि आचार समिति सांसदों के आचरण से संबंधित शिकायतों की जांच करती हैं और इस मामले में शपथ के समय जो उन्होंने दूसरे देश का नाम लेकर उसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शायी है, वह निश्चित ही एक सांसद के रूप में औवेसी को कदाचरण के लिए दोषी ठहराए जाने का महत्वपूर्ण साक्ष्य है।
इसके अलावा राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु स्वयं से इसे संज्ञान में लेकर लोकसभा अध्यक्ष को लिख सकती हैं। वे लोकसभा अध्यक्ष को सीधे निर्देशित भी कर सकती हैं। क्योंकि संसद भंग करने से लेकर किसी भी सदस्य के अधिकार समाप्त कर देने समेत तमाम अधिकार राष्ट्रपति के पास अपार शक्तियों के रूप में मौजूद हैं। ऐसे में वे चाहें तो सीधे ही अपनी कलम से औवेसी की संसद सदस्यता को रद्द करने का आदेश दे सकती हैं।