पाकिस्तान के हालात बांग्लादेश से ज्यादा खराब
– डॉ. अनिल कुमार निगम
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट होने के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या दक्षिण एशिया के इस क्षेत्र में तीसरी बार भी ऐसी घटना होगी? क्या अगला नंबर पाकिस्तान का है? यह सवाल सोलह आना खरा इसलिए है क्योंकि इस समय पाकिस्तान के हालात काफी खराब हैं और वहां पर सरकार के खिलाफ कई आंदोलन चल रहे हैं। पाकिस्तान अनेक भीषण चुनौतियों और संकटों से जूझ रहा है।
पाकिस्तान के अंदर जिस तरह के विरोध प्रदर्शन और आंदोलन चल रहे हैं, उससे आभास होता है कि वहां भी सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़कने की कगार पर है। यह बात इसलिए दावे के साथ कही जा सकती है क्योंकि बांग्लादेश की तरह पाकिस्तान में भी तख्तापलट का इतिहास रहा है। रावलपिंडी में जमात-ए-इस्लामी के नेतृत्व में हजारों लोग बेरोजगारी व महंगाई के विरोध में सड़कों पर उतर कर शहबाज शरीफ को धमका रहे हैं कि उनका हश्र हसीना से बुरा होगा। दरअसल, पाकिस्तान स्टूडेंट फेडरेशन (पीएसएफ) ने 30 अगस्त तक पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को रिहा करने की मांग की है। स्टूडेंट फेडरेशन ने पाकिस्तान की सरकार को अल्टीमेटम जारी किया। छात्रों की मांग है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान बेगुनाह हैं और जल्द उनको कैद से बाहर निकाला जाए।
यहां पर भारत के दो पड़ोसी देशों में हुई दो घटनाओं की चर्चा उचित होगी। पहली घटना 8 जुलाई 2022 की है। श्रीलंका सरकार ने इसी तारीख को ऐलान किया था कि देश दिवालिया हो गया। जिसके बाद हजारों की संख्या में श्रीलंकाई सड़कों पर उतर आए। कोलंबो में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के भवन को घेर लिया। गोटबाया को देश छोड़ कर भागना पड़ा था। दूसरी घटना है 5 अगस्त 2024 की है जब बांग्लादेश में दो महीने से जारी आरक्षण विरोधी आंदोलन बेकाबू हो गया। भारी आगजनी, हिंसा और तोड़फोड़ करते प्रदर्शनकारी पीएम हाउस में घुस गए। पीएम शेख हसीना ने इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में पहले भी सरकार के तख्तापलट का इतिहास रहा है। वर्ष 1958 में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति मेजर जनरल इसकंदर मिर्जा ने पाकिस्तानी सांसद और प्रधानमंत्री फिरोज खान नून की सरकार को भंग कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने देश में मार्शल लॉ लागू कर आर्मी कमांडर इन चीफ जनरल अयूब खान को देश की बागडोर सौंप दी थी। महज 13 दिन बाद ही अयूब खान ने तख्तापलट करते हुए देश के राष्ट्रपति को पद से हटा दिया था।
पाकिस्तान का दूसरा तख्तापलट आर्मी चीफ जनरल जिया उल हक द्वारा किया गया था। जिया उल हक ने 4 जून 1977 को देश के प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को पद से हटा दिया था। इस तख्तापलट को ‘ऑपरेशन फेयर प्ले’ के नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह से पाकिस्तान में तीसरी बार सरकार का तख्तापलट 1999 में आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार का तख्तापलट किया था।
पिछले कुछ समय से पाकिस्तान में उथल-पुथल चल रही है लेकिन बांग्लादेश में हुए तख्तापलट के बाद पाकिस्तान में लोगों का असंतोष चरम पर पहुंच गया है। रावलपिंडी शहर के मुख्य केंद्र मुर्री रोड पर सड़क को बंद करके जमात-ए इस्लामी का धरना चल रहा है, जहां हजारों लोग बैठे हैं और मांग कर रहे हैं कि शहबाज शरीफ सरकार बेरोजगारी, मुद्रास्फीति का तत्काल समाधान करे और विशेष रूप से नागरिकों के बिजली बिलों में वृद्धि को कम करे। इस बीच बलूचिस्तान के एकमात्र बंदरगाह शहर ग्वादर सहित कई अन्य शहरों में पिछले दो हफ्ते से धरना-प्रदर्शन जारी है। रावलपिंडी के विरोध प्रदर्शन के विपरीत बलूचिस्तान में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें भी देखी गई हैं, जहां गोलीबारी में कई लोग मारे गए, दर्जनों घायल हुए और कई लोगों को सरकारी एजेंसियों द्वारा उठा लिया गया। इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व एक युवा बलोच महिला डॉ. महरंग बलोच कर रही हैं, जो मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। इसके अलावा बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी बलूचिस्तान को अलग देश बनाने की मांग करती रही है।
उत्तरी इलाकों में भी लोग पिछले कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्होंने काराकोरम हाईवे को जाम कर दिया है, जो खुंजराब दर्रे के माध्यम से पाकिस्तान को चीन से जोड़ रहा है। वे संघीय राजस्व बोर्ड और पाकिस्तान सीमा शुल्क के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, जिन्होंने हाल ही में व्यापारियों पर कर लगाया है। पाकिस्तान से चीन जाने के इच्छुक कई विदेशी भी यहां फंस गए हैं और उन्हें प्रदर्शनकारियों के साथ बैठे देखा जा सकता है। वास्तविकता यह है पाकिस्तान के हर हिस्से में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। यही नहीं, सिंध प्रांत और पाक अधिकृत कश्मीर में पहले से पाकिस्तानी शासकों द्वारा भेदभाव करने के चलते असंतोष चरम पर है।
दूसरी ओर पाकिस्तान फिलहाल भारी आर्थिक संकट से जूझ रहा है और नकदी की कमी के कारण उसे भुगतान संकट का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के सामने पाकिस्तान ने सात अरब डॉलर कर्ज की मांग की है। लेकिन कर्ज को लेकर आईएमएफ की कुछ कठिन शर्तें भी हैं, जो पाकिस्तान को पूरी करनी होंगी। पाकिस्तान के लिए डगर बेहद जटिल है। कहने का आशय है कि भारत के आतंरिक मामलों में हमेशा टांग अड़ाने वाला पाकिस्तान बदहाली के ऐसे नासूर से जूझ रहा, जो कभी भी उसको तबाही के आगोश में ले सकता है। हालांकि अगर ऐसा होता है तो भारत के लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि पाकिस्तान का पतन होने के बाद चीन अपना शैतानी पंजा इस क्षेत्र में बढ़ाएगा जिसको तहस-नहस करने के लिए भारत को पहले ही तैयारी कर लेनी चाहिए।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)