धर्मेंद्र की 90वीं सालगिरह: दारा सिंह से कुश्ती सीखी, गिरते पेड़ को रोककर बचाई थी जान

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नई दिल्ली /भारतीय सिनेमा के इतिहास में धर्मेंद्र वह नाम हैं जिनकी मुस्कान सादगी इंसानियत और दिलकश अदाएं आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं। पर्दे पर वे जितने दमदार दिखते थे असल जिंदगी में उससे भी कई गुना ज्यादा संवेदनशील रिश्तों को निभाने वाले और ज़मीन से जुड़े इंसान थे। उनके 90वें जन्मदिन पर पद्मश्री भजन सम्राट अनूप जलोटा पद्मश्री बांसुरी वादक पंडित रोनू मजूमदार और एड गुरु-फिल्ममेकर प्रभाकर शुक्ल ने उनसे जुड़ी कई प्रेरणादायी और भावुक यादें साझा कीं।

पंजाबी संस्कार सादगी और परिवार से गहरा लगाव

अनूप जलोटा बताते हैं कि धर्मेंद्र के अंदर बचपन से ही उनके पिता के संस्कार बस गए थे। वे फगवाड़ा के रहने वाले थे जहां सादगी प्रेम और इंसानियत सबसे बड़ी पहचान मानी जाती है। मुंबई में शुरुआती दिनों के संघर्ष के बीच भी धर्मेंद्र अपने परिवार और दोस्तों से जुड़ाव नहीं भूलते थे। वे फैमिली मैन थे-पहली पत्नी और बच्चों से लेकर हेमा मालिनी तक सभी का सम्मान करते रहे। धर्मेंद्र बचपन से ही एक्टिंग के दीवाने थे। पहली बार दिलीप कुमार को देखने के बाद उन्होंने अभिनेता बनने का संकल्प ही मानो ले लिया था। अनूप जलोटा उन्हें याद करते हुए कहते हैं कि पहली मुलाकात में लगा जैसे कमरे की रोशनी बढ़ गई हो-लंबे गोरे सुंदर और व्यक्तित्व में अद्भुत चमक।

बॉडी बिल्डिंग कल्चर के पहले दूत

आज बॉलीवुड में फिटनेस ट्रेंड का बोलबाला है लेकिन इसकी शुरुआत धर्मेंद्र ने की थी। उनके समय में देवानंद या दिलीप कुमार जैसे सितारों पर फिटनेस का इतना जोर नहीं था। लेकिन धर्मेंद्र मानते थे कि एक्टर के लिए मजबूत शरीर जरूरी है। यही वजह है कि उनकी बाजुओं और कंधों की ताकत के किस्से आज भी मशहूर हैं।

पंजाब से आने वालों के लिए धरम पाजी का घर एक सहारा

धर्मेंद्र बेहद मददगार थे लेकिन कभी इसका ढिंढोरा नहीं पीटते। पंजाब से आने वाले लोग उनके घर के नीचे बने कमरों में रहते खाते रुकते। धरम पाजी बिना पहचान पूछे हर किसी की मदद कर देते थे।

गजलों पर रो पड़ने वाले भावुक कलाकार
अनूप जलोटा एक किस्सा सुनाते हैं कि दिल्ली जाते हुए ट्रेन में वे धर्मेंद्र को गजलें सुना रहे थे और धरम पाजी बार-बार भावुक होकर रो पड़ते थे। उनके अनुसार धर्मेंद्र जितने मजबूत बाहर से थे उतने ही नरमदिल अंदर से। गरम धरम और ढाबे का देहाती स्वाद
पंडित रोनू मजूमदार बताते हैं कि गरम धरम ढाबे का आइडिया खुद धर्मेंद्र ने दिया था। उन्हें देसी खाने से बहुत लगाव था। दाल साग लस्सी-ये सब उनके पसंदीदा व्यंजन थे। उनकी उपस्थिति और उनके खेतों के अनाज से बने भोजन ने मुर्थल के इस ढाबे को बेहद लोकप्रिय बना दिया।

बांसुरी की धुन सुनकर रो पड़े थे धर्मेंद्र

फिल्म बेताब में सनी देओल को लॉन्च करते समय रोनू मजूमदार बांसुरी बजा रहे थे। उनकी धुन ऐसी थी कि सनी नहीं बल्कि धर्मेंद्र ही रो पड़े। भावुक होकर उन्होंने उन्हें 500 रुपए का नोट दिया जो रोनू आज भी सहेजकर रखते हैं। दारा सिंह को गोद में उठा लेने वाली ताकत
धर्मेंद्र और दारा सिंह की दोस्ती जगजाहिर थी। एक बार कुश्ती देखते समय दारा सिंह ने जब विरोधी पहलवान को हराया तो खुशी में धर्मेंद्र ने उन्हें उठा लिया। लगभग 130-135 किलो के दारा सिंह को उठाना किसी आम इंसान के बस की बात नहीं थी। धर्मेंद्र अक्सर दारा सिंह के साथ कुश्ती के दांव-पेंच भी सीखते थे जो उनकी फिल्मों के लड़ाई वाले दृश्यों में साफ नजर आता है।

गिरते पेड़ को रोककर कई लोगों की जान बचाई

फिल्म लोहा की शूटिंग का किस्सा धार्मिक बहादुरी साबित करता है। तेज हवा के सीन के लिए पेड़ को काटा गया लेकिन कट ज़रूरत से ज्यादा गहरा हो गया और पेड़ सीधे सेट की ओर गिरने लगा। धर्मेंद्र दौड़े और अपने कंधे से पेड़ को रोककर क्रू मेंबर्स की जान बचा ली।

600 पैक वाले धरम जी-खुद करते थे खतरनाक सीन
फिल्म बंटवारा में एक बेकाबू ऊंट को धर्मेंद्र ने दोनों हाथों से रोक दिया था। वे स्टंटमैन का सहारा नहीं लेते थे। कहते हैं-उनके पास 6-पैक नहीं बल्कि 600-पैक की ताकत थी।

ट्रक ड्राइवर से कपड़े मांगकर की शूटिंग

फिल्म दो चोर के दौरान महेश भट्ट कॉस्ट्यूम भूल गए थे। डर के मारे उन्होंने धर्मेंद्र को बताया तो उन्होंने तुरंत एक असली ट्रक ड्राइवर से लुंगी कुर्ता और पगड़ी मांगकर वही पहनकर शूटिंग कर ली। यह उनकी प्रोफेशनलिज़्म की मिसाल है।

83 साल की उम्र में भी कैमरे को दोस्त मानने वाला कलाकार
प्रभाकर शुक्ल बताते हैं कि 83 वर्ष की उम्र में भी धर्मेंद्र सेट पर समय से पहले पहुंच जाते थे। कहते- कैमरा मेरा दोस्त है। वे डायलॉग खुद उर्दू में लिखते सभी के साथ फोटो खिंचवाते और अपनी शायरी सुनाते। उनकी सरलता और विनम्रता वही थी-जो एक सच्चे कलाकार की पहचान है।