ब्रिटेन : सामाजिक संगठन के रूप में हुई थी लेबर पार्टी की शुरूआत, 14 साल बाद फिर सत्ता में आए कीर स्टार्मर

नई दिल्‍ली । ब्रिटेन में शुक्रवार को आम चुनाव के नतीजे आ रहे हैं। इसमें 650 सीटों वाली ब्रिटिश संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स) में विपक्षी लेबर पार्टी ने 400 से ज्यादा सीटों के साथ प्रचंड जीत दर्ज की है। वहीं प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। इस तरह से ब्रिटेन की सियासत में बड़ा बदलाव हुआ है। ब्रिटेन के लोग 14 साल बाद कीर स्टार्मर को नए प्रधानमंत्री के रुप में देखेंगे। वहीं कंजर्वेटिव प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का 18 महीने का कार्यकाल अब समाप्त हो गया।

ब्रिटेन चुनाव के नतीजे कैसे रहे?
4 जुलाई 2024 को ब्रिटेन में 650 संसदीय सीटों के लिए मतदान हुआ। ये चुनाव यूनाइटेड किंगडम के सभी हिस्सों इंग्लैंड, उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में हुए। 5 जुलाई को ब्रिटेन चुनाव के नतीजे घोषित किए जा रहे हैं। इन चुनावों में कुल 392 पंजीकृत पार्टियां रहीं लेकिन मुख्य मुकाबला ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव और मुख्य विपक्षी नेता कीर स्टार्मर की लेबर पार्टी के बीच हुआ।

अब तक 650 में से 647 सीटों के नतीजे घोषित हो गए हैं। पार्टीवार नतीजे देखें तो विपक्षी लेबर पार्टी ने 412 सीटें जीत ली हैं। वहीं मौजूदा सत्ताधारी दल कंजर्वेटिव महज 120 सीटें जीती है। बाकी पर अन्य छोटे दलों के उम्मीदवार विजयी हुए हैं।

आखिर लेबर पार्टी का इतिहास क्या है?
जिस लेबर पार्टी ने ब्रिटेन के चुनाव में जीत दर्ज की है उसका इतिहास 124 साल पुराना है। लेबर पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, इसकी स्थापना साल 1900 में हुई थी। इसका गठन कामकाजी लोगों को आवाज देने के लिए किया गया था। मजदूर वर्ग के लोगों, ट्रेड यूनियनवादियों और समाजवादियों के कई वर्षों के संघर्ष के नतीजे के रूप में यह पार्टी बनी। पार्टी की स्थापना करने वाले कीर हार्डी हैं। इस दल का लक्ष्य ब्रिटिश संसद में मजदूर वर्ग की आवाज का प्रतिनिधित्व करना था। यही वह लक्ष्य था जिसने कीर हार्डी और उनके सहयोगियों को एकजुट किया। फरवरी 1900 में लंदन के मेमोरियल हॉल में पार्टी की शुरुआत हुई।

शुरुआती साल वर्ष और सत्ता तक का सफर
सामाजिक संगठन के रूप में शुरू हुई पार्टी का धीरे-धीरे विकास हुआ। 1906 में इसने अपना पहला चुनाव लड़ा जिसमें 26 सांसद चुने गए। इसके साथ उन्होंने लेबर को अपना आधिकारिक नाम चुना। पार्टी का सफर यूं ही जारी रहा और आने वाले वर्षों में और अधिक सांसद चुने गए। 1923 के ब्रिटिश चुनाव तक लेबर पार्टी सत्ता के लिए चुनौती पेश करने के लिए अच्छी स्थिति में आ गई। यह वह चुनाव था जिसमें ब्रिटेन के इतिहास में पहली लेबर सरकार बनी और रामसे मैकडोनाल्ड पार्टी के पहले प्रधानमंत्री बने।

पहली लेबर सरकार बहुत कम समय तक सत्ता में रही। पार्टी के अनुसार, बहुमत न होने के बावजूद इसने आवास, शिक्षा और सामाजिक बीमा में सुधार के साथ-साथ बेरोजगारी को दूर करने के लिए कानून पारित किए। 1924 की सरकार सिर्फ कुछ महीनों तक चली, पांच साल बाद दूसरी सरकार के चुनाव हुए। 1931 के चुनाव में केवल 52 लेबर सांसद चुने गए।

क्लेमेंट एटली ने बढ़ाया पार्टी का सफर
1931 के चुनाव के बाद भी जो लोग पार्टी में बने रहे, उनमें से एक थे क्लेमेंट एटली। 1931 में वे उपनेता बने और नई पीढ़ी के साथ मिलकर पार्टी की किस्मत बदलने का काम किया। इसके बाद 1935 में उन्हें पार्टी का नेता चुना गया। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश जनता परिवर्तन देख रहीं थी। इसके घोषणापत्र ‘आइए हम भविष्य का सामना करें’ ने पार्टी को बड़ी जीत दिलाई, जिसमें पांच प्रमुख समस्याओं- गरीबी, गंदगी, बीमारी, अज्ञानता और बेरोजगारी को खत्म करने का संकल्प लिया गया था। यह एक ऐसा संदेश था जिसने पूरे ब्रिटेन की जनता को प्रभावित किया और क्लेमेंट एटली को 393 सीटों पर जीत दिलाकर सत्ता के आसन तक पहुंचा दिया।

एटली की लेबर सरकार ने सामाजिक सुरक्षा लागू करने, प्रमुख उद्योगों को सार्वजनिक स्वामित्व में वापस लाने और सुरक्षित घर उपलब्ध कराने के लिए आवास निर्माण का एक प्रमुख कार्यक्रम शुरू करने जैसे कई अहम फैसले लिए। हालांकि, एटली सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा की शुरुआत करना लेबर सबसे बड़ी उपलब्धि मानती है।

विल्सन का समय और उसके बाद
लगभग 50 प्रतिशत वोट पाने के बावजूद लेबर ने 1951 में सत्ता खो दी। एटली के बाद ह्यूग गेट्सकेल सत्ता में आए और हेरोल्ड विल्सन के नेतृत्व में 1964 तक सत्ता में वापस नहीं आए। विल्सन और उसके बाद जेम्स कैलाघन के नेतृत्व में लेबर सरकारों (1964-70 और 1974-79) में बदलाव हुए। इनमें मृत्युदंड की समाप्ति, समलैंगिकता का गैर-अपराधीकरण, नस्लीय भेदभाव को गैरकानूनी घोषित करने के लिए कानून और ओपन यूनिवर्सिटी की स्थापना।

लेबर की रोजगार मंत्री बारबरा कैसल ने महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन किया। उन्होंने 1970 में समान वेतन अधिनियम को लागू किया था जिसने श्रमिक पुरुषों और महिलाओं ने लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बनाया।

‘न्यू लेबर’ और सत्ता में वापसी
1994 में जॉन स्मिथ की मृत्यु के बाद टोनी ब्लेयर को नेता चुना गया, जिससे न्यू लेबर का युग शुरू हुआ। इस अवधि में शुरू किए गए सुधार कार्यक्रम 1997 के आम चुनाव में भारी जीत का कारण बने। इसके बाद 18 साल तक कंजर्वेटिव सरकार चली। उसके बाद ब्रिटेन ने टोनी ब्लेयर और फिर गॉर्डन ब्राउन का नेतृत्व देखा। 2000 के दशक के अंत में वैश्विक आर्थिक संकट आया और 2010 के चुनाव में लेबर पार्टी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

कीर स्टार्मर और फिर सत्ता में वापसी
अप्रैल 2020 में लेबर सदस्यों ने कीर स्टारमर को पार्टी का नया नेता चुना। उन्होंने ब्रिटिश जनता के साथ फिर से जुड़ने की चुनौती का सामना किया। कीर स्टारमर का चुनाव वैश्विक कोरोना वायरस महामारी और ब्रिटेन में रिकॉर्ड आर्थिक मंदी के बीच हुआ। कीर ने लॉकडाउन के दौरान मतदाताओं तक पहुंचने और उनकी चिंताओं को सुनने के लिए प्रचार के नए तरीकों का इस्तेमाल किया।

जैसे ही ब्रिटेन महामारी से उभरा कीर ने सरकार के लिए लेबर के पांच मिशन निर्धारित किए। देश के सामने सबसे अर्थव्यवस्था जैसे बड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके आखिर 14 साल बाद लेबर पार्टी सत्ता में आने को तैयार है। 4 जुलाई को हुए आम चुनाव में इसने ऋषि सुनक कंजर्वेटिव पार्टी को बुरी तरह मात दिया है।