रूस नहीं करना चाहता था भारतीयों को अपनी सेना में शामिल, बतायी क्‍या थी वजह

मॉस्‍को । रूस ने कहा कि वह रूसी सेना में सहायक कर्मी के रूप में भर्ती किये गए भारतीयों की वापसी के भारत के आह्वान से संबंधित मुद्दे के शीघ्र समाधान की उम्मीद कर रहा है। उसने कहा कि उनकी भर्ती पूरी तरह से एक व्यावसायिक मामला है। रूसी सरकार की ओर से इस मुद्दे पर पहली टिप्पणी में, रूस के दूतावास प्रभारी रोमन बाबुश्किन ने कहा कि मॉस्को कभी नहीं चाहता था कि भारतीय उसकी सेना का हिस्सा बनें और संघर्ष के संदर्भ में उनकी संख्या नगण्य है।

उन्होंने एक सवाल के जवाब में मीडियाकर्मियों से कहा, ‘हम इस मुद्दे पर भारत सरकार के साथ हैं। हमें उम्मीद है कि इस मुद्दे का जल्द समाधान होगा।’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के समक्ष इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया, जिसके बाद रूस ने रूसी सेना में सहायक कर्मियों के रूप में कार्यरत भारतीय नागरिकों की शीघ्र रिहाई और स्वदेश वापसी सुनिश्चित करने का वादा किया था और इसके एक दिन बाद बाबुश्किन का बयान आया।

बाबुश्किन ने कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हम पूरी तरह स्पष्ट कर देते हैं कि हमने कभी नहीं चाहा कि भारतीय रूस की सेना में शामिल हों। आप इस पर रूस के अधिकारियों द्वारा कभी कोई घोषणा नहीं देखेंगे।’

रूसी राजनयिक ने कहा कि ज्यादातर भारतीयों की नियुक्ति एक ‘कमर्शियल फ्रेमवर्क’ के तहत की गई थी क्योंकि वे धन अर्जित करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि भारतीयों की 50, 60 या 100 संख्या, व्यापक संघर्ष के संदर्भ में कोई महत्व नहीं रखती।

उन्होंने कहा, ‘वे विशुद्ध रूप से वाणिज्यिक कारणों से आए थे और हम उन्हें भर्ती नहीं करना चाहते थे।’ बाबुश्किन ने कहा कि सहायक कर्मी के रूप में भर्ती अधिकतर भारतीय अवैध तरीके से काम कर रहे हैं क्योंकि उनके पास काम करने के लिए उपयुक्त वीजा नहीं है। उन्होंने कहा कि उनमें से अधिकतर पर्यटक वीजा पर रूस आए थे।

मारे गऐ लोगों के परिजनों को क्या मुआवजा और रूसी नागरिकता दी जाएगी, इस सवाल के जवाब में बाबुश्किन ने कहा कि ऐसा तो संविदा की प्रतिबद्धताओं के अनुसार वैसे भी होना चाहिए। विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने मंगलवार को मॉस्को में कहा था कि रूस ने अपनी सेना में सेवारत सभी भारतीय नागरिकों को जल्द मुक्त करने का वादा किया है।