कूटनीति में नेशन फर्स्ट; भारत-चीन के बीच SCO की बैठक, टैरिफ वॉर के बीच अमेरिका को दिया करारा जवाब
नई दिल्ली । चीन के तियानजिन में शंघाई शिखर सम्मेलन 2025 संपन्न हो गया। बैठक में चीन, रूस और भारत ने जिस तरह से एकजुटता दिखाई उससे पूरी दुनिया में एक संदेश गया है। हालांकि, एससीओ शिखर सम्मेलन से इतर चीन और भारत के बीच बैठक को लेकर भी खूब चर्चा हो रही है। इस चर्चा की वजह है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने के बाद भारत की पड़ोसी देश ड्रैगन के साथ करीबी।
भारत ने अमेरिकी टैरिफ के बीच चीन के बातचीत को बढ़ाकर कूटनीति रूप से अहम कदम उठाया है। भारत ने इसके जरिये ही अमेरिका समेत दुनिया को फिर से संदेश दिया है कि वैश्विक राजनीति में नेशन फर्स्ट काफी अहम है। खास बात रही है कि भारत एससीओ में पहलगाम आतंकी हमले को शामिल कराने में सफल रहा। इसके साथ ही भारत ने जिस तरह से चीन के साथ करीबी बढ़ाते हुए रूस के साथ अपने संबंधों को लेकर प्रतिबद्धता व्यक्त की है वह स्पष्ट रूप से अमेरिका की टैरिफ वाली दादागिरी को जवाब है।
कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मीटिंग
पीएम मोदी ने चीन के शहर तियानजिन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मीटिंग की। प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि दोनों पक्षों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के महत्व पर सहमति जताई। यह मीटिंग कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रहीं क्योंकि यह वैश्विक तनावों के बीच बहुपक्षीय सहयोग का एक प्रमुख एससीओ शिखर सम्मेलन में हुई।
भारत-चीन रिश्तों का सबसे संवेदनशील पहलू सीमा विवाद है। गलवान घाटी की झड़प और लद्दाख क्षेत्र में तनाव ने दोनों देशों के संबंधों में गहरा अविश्वास पैदा किया है। ऐसे में भारत का स्पष्ट रुख यह है कि सीमा पर शांति और स्थिरता के बिना रिश्तों में सामान्यता संभव नहीं।
अतीत के कड़वे अनुभवों ( 2020 के गलवान संघर्ष और सीमा विवाद) के बावजूद भारत ने एसीओ सम्मेलन में जाने का फैसला किया। भारत की तरफ से यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि अगस्त 2025 में दोनों देशों के बीच एलएससी पर सकारात्मक बातचीत एक दुर्लभ कूटनीतिक सफलता मिली थी, जो द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक गति लाई।
सुरक्षा, कनेक्टिविटी का प्लेटफॉर्म
भारत की भागीदारी का मुख्य कारण एससीओ को सुरक्षा, कनेक्टिविटी और अवसर के मंच के रूप में देखना है। यहां आतंकवाद पर दोहरे मापदंडों को अस्वीकार करते हुए (जो पाकिस्तान की ओर इशारा करता है) क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा दिया गया। खास बात है कि भारत
अमेरिका ने जिस तरह से भारत पर टैरिफ लगाए हैं उसके बाद भारत और चीन ने कजान के बाद हुई प्रगति को आगे बढ़ाने का फैसला किया। कजान मुलाकात के बाद तियानजिन मीटिंग में बाद भारत-चीन संबंधों में सकारात्मक प्रगति की समीक्षा की। दोनों देशों ने सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखने के महत्व पर सहमति जताई। इसके साथ ही पारस्परिक सम्मान, हित और संवेदनशीलता के आधार पर सहयोग के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
पहलगाम पर बड़ी कूटनीतिक सफलता
सम्मेलन के अंतिम दिन भारत ने एससीओ शिखर सम्मेलन में बड़ी कूटनीतिक सफलता हासिल की। बैठक खत्म होने के बाद शंघाई सहयोग संगठन ( SCO ) के राष्ट्राध्यक्षों ने घोषणापत्र जारी किया। खास बात रही कि इस घोषणा पत्र में भारत के जम्मू-कश्मीर में हुए पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा की गई।
भारत के लिए यह बड़ी बात रही कि जिस मंच पर रूस और चीन जैसे दिग्गज देश के राष्ट्राध्यक्ष मौजूद थे, वहां पाकिस्तान के सामने ही पहलगाम हमले की निंदा हुई। इसके साथ ही आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया गया। SCO के सभी सदस्य देशों ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की। साथ ही यह भी कहा गया कि इस तरह के आतंकी हमलों के दोषियों और मदद करने वालों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए।
भारत के लिए नेशन फर्स्ट और चीन का साथ
ट्रंप के टैरिफ जैसे वैश्विक दबावों में भारत को चीन और रूस जैसे साझेदारों के साथ मजबूत संबंधों की जरूरत है। इन देशों के जरिये ही भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रख सकता है। साथ ही सीमा क्षेत्रों में शांति सुनिश्चित करने की दिशा में कदम आगे बढ़ा सकता है। भारत अंतरराष्ट्रीय सहयोग का पक्षधर है। हालांकि, भारत कभी भी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और विकासात्मक प्राथमिकताओं से समझौता नहीं करता।
चीन के साथ संवाद बनाए रखना भी इसी सोच का हिस्सा है, ताकि क्षेत्रीय सहयोग जारी रहे। भारत ने एससीओ समिट की बैठक में शामिल होकर मध्य एशियाई देशों, रूस और ईरान जैसे देशों के साथ संबंध मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
