वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ जानें कैसे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जन्मा राष्ट्रभक्ति का यह प्रतीक

8-12-1765190254

नई दिल्‍ली । भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कुछ घटनाएं और तिथियां ऐसी हैंजो आज भी हमारे दिलों में अमिट यादें छोड़ जाती हैं। 7 नवंबर की तारीख भी ऐसी ही एक महत्वपूर्ण तिथि हैजब भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक नया अध्याय जुड़ा। आज से 150 साल पहले भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना हुई थीजिसने देशवासियों में राष्ट्रीय एकता और संघर्ष की भावना को प्रगाढ़ किया। इस गीत ने स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया और देश की आज़ादी की लड़ाई में एक नया जोश भर दिया।

वंदे मातरम का जन्म
वंदे मातरम की रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी। यह गीत उनकी काव्य-रचनाओं के संग्रह आनंदमठ 1882से लिया गया था। आनंदमठ उपन्यास के मध्य भाग मेंजहां बंगाल के संतरी और मठ के साधु अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध करते हैंवहां वंदे मातरम की रचना ने भारतीयों के दिलों में देशभक्ति की एक नयी आग प्रज्वलित की। इस गीत के बोल न केवल देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेबल्कि उन्होंने पूरे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक संगठित आंदोलन की दिशा दी। वंदे मातरम का शब्दार्थ माँ तुझे सलाम या भारत माता की जय से भी जुड़ा हैजो भारतीयों के लिए राष्ट्रीय गौरव और सम्मान का प्रतीक बन गया। इसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और प्यार से लिखाजिसे आज भी हर भारतीय गाता है।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

जब यह गीत पहली बार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मैदान में गाया गयातो इसके प्रभाव से एक नया क्रांतिकारी जोश पैदा हुआ। इसे सबसे पहले 7 नवंबर 1905 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने कोलकाता में एक सभा में गाया थाजब बंगाल विभाजन का विरोध हो रहा था। यह गीत न केवल भारतीयों को एकजुट करता थाबल्कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उनके दिलों में विद्रोह की भावना भी उत्पन्न करता था।

इसके बाद1905 से लेकर 1947 तकवंदे मातरम को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रतीक के रूप में गाया गया और इसने भारतीयों को अपनी मातृभूमि के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी। खासकरस्वाधीनता संग्राम में शामिल नेताओं ने इस गीत का उपयोग अपने भाषणों और आंदोलनों में किया। यह गीत महात्मा गांधीसुभाष चंद्र बोस और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे महापुरुषों के आंदोलन का हिस्सा बन गया।

वंदे मातरम का राष्ट्रीय गीत में रूपांतरण

सभी भारतीयों के दिलों में गहरी जगह बनाने वाला वंदे मातरम गीत1950 में भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता प्राप्त हुआ। यह गीत एक समय में भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन चुका थाऔर अब यह हमारे राष्ट्रीय गौरव का हिस्सा है। 8 दिसंबर 2023 कोवंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर परसंसद में विशेष चर्चा का आयोजन किया जाएगाजिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। इसके अगले दिन9 दिसंबर को राज्यसभा में भी इस पर विमर्श किया जाएगा।

समाज में गहरी छाप

वंदे मातरम के गीत का हर शब्द भारतीय समाज में एक अनूठा प्रभाव छोड़ता है। यह गीत आज भी न केवल स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता हैबल्कि भारत की एकता और अखंडता का भी प्रतीक बन चुका है। आज भी विभिन्न राष्ट्रीय कार्यक्रमोंस्कूलों और कॉलेजों में इस गीत को सम्मान के साथ गाया जाता हैऔर यह भारतीयों के दिलों में अपने मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और प्रेम को और गहरा करता है।

वंदे मातरम न केवल एक गीत हैबल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणास्त्रोत भी बन गया। इसने भारतीयों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और एक सशक्तएकजुट राष्ट्र के निर्माण की दिशा में योगदान दिया। आजजब हम इस गीत को गाते हैंतो हम न केवल अपनी मातृभूमि के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैंबल्कि उन स्वतंत्रता सेनानियों को भी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैंजिन्होंने इस देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।