इंदौर सरकारी डॉक्टरों द्वारा मरीजों को निजी अस्पताल भेजने की मामले में कार्रवाई, एक निलंबित, एक का वेतन काटा
हाल ही में एक मरीज, जो रतलाम से न्यूरोसर्जरी विभाग में इलाज के लिए एमवायएच अस्पताल आया था, का इलाज करने के बजाय उसे निजी अस्पताल भेजने का मामला सामने आया। रात के समय ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने मरीज को इलाज के लिए भेजने के बजाय उसे जमीन पर लिटा दिया और कहा कि उसका आयुष्मान कार्ड है, इसलिए उसे इंडेक्स अस्पताल में भेजा जाए। यह सारी प्रक्रिया मरीज द्वारा लिखित शिकायत करने के बाद उजागर हुई, जिसमें यह बात सामने आई कि एमसीएच के एक विद्यार्थी ने मरीज को निजी अस्पताल भेजने का निर्णय लिया था, और इसके बदले उसे निजी अस्पताल से रकम मिलती थी। इस मामले की जांच के बाद डॉक्टर का 15 दिन का वेतन काटा गया है।
इतना ही नहीं एमवाय अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही की यह घटना अकेली नहीं है। अस्पताल में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों की अनुपस्थिति के कारण मरीजों को इमरजेंसी इलाज देने में भी परेशानी होती है। हाल ही में सिमरोल सड़क हादसे के बाद घायलों को इलाज के लिए एमवाय अस्पताल भेजा गया था, लेकिन इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में कोई ड्यूटी डॉक्टर मौजूद नहीं था। कलेक्टर के अस्पताल पहुंचने पर यह लापरवाही सामने आई। दो घंटे बाद जब महिला सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर आईं, तो उन्होंने बताया कि वह घर पर आराम कर रही थीं। इस लापरवाही के लिए डीन ने महिला डॉक्टर को बर्खास्त कर दिया।
अस्पताल में भर्ती मरीजों की कमी के पीछे भी इन डॉक्टरों की लापरवाही और निजी अस्पतालों के साथ सांठगांठ मुख्य कारण मानी जा रही है। एमवायएच अस्पताल के हड्डी रोग विभाग, पेट रोग विभाग, मेडिसिन विभाग और न्यूरोसर्जरी विभाग के डॉक्टर भी मरीजों को निजी अस्पताल भेजने के इस गिरोह में शामिल हैं। इन गिरोहों के संरक्षण में ही ड्यूटी डॉक्टर और जूनियर डॉक्टर यह कृत्य कर रहे हैं। इसके अलावा एंबुलेंस संचालक स्टाफ और आउटसोर्स कंपनियों के कर्मचारी भी इन गतिविधियों में शामिल हैं। इस कारण से सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों की संख्या घटती जा रही है, और निजी अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ रही है।
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए कहा कि मरीजों के इलाज में किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इस घटना में एक डॉक्टर का 15 दिन का वेतन काटा गया है, और ड्यूटी पर अनुपस्थित रहने वाली सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर को बर्खास्त किया गया है।
यह घटना इंदौर के सरकारी अस्पतालों में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही की गंभीर समस्या को उजागर करती है। मरीजों की जान से खेलने वाले इन डॉक्टरों और उनके गिरोह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि जनता को उचित इलाज मिल सके और सरकारी अस्पतालों में विश्वास पुनः बहाल हो।
