MP बनेगा देश का नया मेडिकल हब, एक मील का पत्थर साबित हुआ इम्यूनोथेरैपी बोले-उप मुख्यमंत्री

इंदौर। उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने कहा है कि मध्य प्रदेश सरकार राज्य में उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ कराने के लिए पूरा प्रयास है। इम्यूनोथेरैपी जैसी उन्नत तकनीक का एमवाय अस्पताल में शुभारंभ इस दिशा में एक मील का पत्थर है।

यह पहल उन मरीजों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है, जिनके इलाज में पारंपरिक पद्धतियां कारगर नहीं रही हैं। यह कदम चिकित्सा के क्षेत्र में न केवल इंदौर बल्कि पूरे प्रदेश की पहचान को एक नई दिशा देगा।

मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व में राज्य सरकार का यह प्रयास है कि स्वास्थ्य सेवाओं को आधुनिकत मेडिकल तकनीकों और सेवाओं से युक्त कर मध्य प्रदेश को देश का प्रमुख चिकित्सा हब बनाया जाए। यह सुविधा राज्य के स्वास्थ्य ढांचे को सशक्त बनाने और उच्च-स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।

सीएआर-टी सेल्स ट्यूमर सेल्स को करती हैं खत्म

एमवाय अस्पताल के अधीक्षक अशोक यादव ने बताया कि काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (Chimeric Antigen Receptors) नामक तकनीक बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद भी लाभ नहीं मिलने वाले मरीजों के लिए कारगर साबित हो सकती है। सीएआर-टी थेरेपी की प्रक्रिया के लिए पहले मरीज का ब्लड सैंपल ले लिया गया है।

इसके तहत बी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL) से पीड़ित मरीज की व्हाइट ब्लड सेल्स को एफरेसिस मशीन द्वारा जमा किया जाता है। इसके बाद, इन सेल्स को जेनेटिक रूप से संशोधित किया जाएगा ताकि ये विशेष काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (सीएआर) ला सकें, जो कैंसर सेल्स की पहचान कर उन्हें खत्म करने की क्षमता रखते हैं।

संशोधित सीएआर-टी सेल्स को मरीज में ट्रांसप्लांट करने के बाद, ये ट्यूमर सेल्स को प्रभावी ढंग से समाप्त करती हैं। एमवायएच में इस सुविधा की शुरुआत के साथ ही देश में शासकीय स्तर पर यह सुविधा उपलब्ध कराने वाला एमवायएच पहला अस्पताल बन गया है। यहां पर इम्यूनोथेरैपी का खर्च लगभग 30 लाख रुपये है, जो कि अमेरिका में इसी तकनीक के लिए लगने वाले लगभग 4 करोड़ रुपये की तुलना में बेहद कम है।

इस अत्याधुनिक मेडिकल प्रोसेस को संयुक्त रूप से आईआईटी मुंबई और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल द्वारा विकसित किया गया है। भारत में यह तकनीक नई है। अभी तक इसके तहत लगभग 150 मरीजों का इलाज हुआ है।

इंदौर के इस अस्पताल में 20 नवंबर को इस प्रोसेस के जरिए पहले मरीज का इलाज किया जाएगा। इसके पहले, कैंसर से जूझ रहे मरीजों के लिए इंदौर में कीमोथेरैपी, रेडिएशन थेरैपी, सर्जरी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट जैसी सुविधाएं मौजूद थीं। अब इम्यूनोथेरैपी के जुड़ जाने से इन मरीजों के लिए उपचार के ऑप्शन और जानकारी हो गई हैं।

इम्यूनोथेरैपी (सीएआर टी सेल) कैसे करती है काम

इस तकनीक में टी सेल्स को जेनेकिट रूप से संशोधित किया जाता है, जिससे ये कैंसर सेल्स को पहचानकर खत्म कर सकें। सामान्य व्हाइट ब्लड सेल्स के दो प्रकार होते हैं- बी और टी सेल्स होती हैं। इम्यूनोथेरैपी में टी सेल्स को व्हाइट ब्लड सेल्स से अलग करके, जेनेटिक मॉडिफिकेशन किया जाता है।

इसके लिए वायरल वैक्टर की मदद ली जाती है ताकि टी-सेल्स अपनी सतह पर काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (CAR) स्थापित कर सकें। इन रिसेप्टर्स की विशेषता होती है कि वे कैंसर सेल्स की सतह पर मौजूद विशेष प्रोटीन को पहचान सकते हैं और उन पर हमला कर सकते हैं। थेरेपी के बाद मरीज को एक से दो सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है ताकि उसकी स्थिति पर पूरी तरह से निगरानी रखी जा सके।