सोमवार को होने वाली बैठक में हो सकता स्वास्थ्य-जीवन बीमा पॉलिसी की जीएसटी दरों में कमी करने का फैसला

नई दिल्ली। जीएसटी परिषद की सोमवार को होने वाली बैठक में फैसला किया जा सकता है। जीवन और स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों पर ज्यादा जीएसटी की दरों से राहत मिलने की उम्मीद है। राज्यों को यह चिंता है कि दरों को कम करने के बाद भी बीमा कंपनियां इसका फायदा ग्राहकों को देंगी या नहीं।

केद्र सहित सभी राज्य इस बात से सहमत हैं कि स्वास्थ और जीवन बीमा पर वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी दरें 18 फीसदी के रूप में बहुत ज्यादा है, जबकि बीमा लोगों के लिए बहुत ही जरूरी विषय है। ऐसे में दरों को कम करने के साथ ही ग्राहकों को इसका फायदा देने के लिए एक प्रणाली भी तैयार की जा सकती है, जिससे बीमा कंपनियां फायदा न ले सकें। एक राज्य के वित्त मंत्री ने बताया, अधिकारी उन विकल्पों की तलाश कर रहे हैं जो पॉलिसीधारकों की मदद कर सकते हैं, लेकिन बीमा कंपनियों के मुनाफा काटने की चिंता भी बनी है। एक दूसरे वित्त मंत्री ने कहा, कंपनियां बढ़े हुए दावों का हवाला देते हुए कोरोना के बाद से प्रीमियम बढ़ा रही हैं। हालांकि, कोरोना संबंधित दावों में कमी आई है, लेकिन बीमा कंपनियों ने पॉलिसीधारकों को कोई राहत नहीं दी है।

राज्यों के मंत्री एक ऐसा फॉर्मूला सुझाने का प्रयास करेंगे, जिससे ग्राहकों पर बोझ कम हो। यह भी सुनिश्चित हो कि जीएसटी दर घटने का लाभ कंपनियों की जेब में न जाए। पहले सरकार के पास मुनाफाखोरी विरोधी कानून थे जो यह सुनिश्चित करते थे कि जीएसटी दरें कम होने पर ग्राहकों को इसका लाभ मिले। हालांकि, जीएसटी दर में कम बदलाव होने के कारण सरकार ने इन कानूनों को निष्क्रिय कर दिया है। इससे अधिकारियों के पास यह अधिकार नहीं है कि वे दरों के घटने पर कंपनियों को कम प्रीमियम लेने का दबाव बना सकें।

मंत्रियों के बीच एक राय यह भी है कि सालाना 50,000 और 60,000 रुपये के बीच वाले प्रीमियम की पॉलिसियों के लिए कर राहत प्रदान की जाए। हालांकि, इससे ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवारों को मदद नहीं मिलेगी। चार लोगों के एक परिवार को आमतौर पर 15 लाख के कवर वाली स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी के लिए लगभग 50,000 का प्रीमियम देना होता है। गंभीर बीमारी की स्थिति में ये रकम भी अपर्याप्त हो सकती है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए बीमा की लागत इससे भी अधिक है। भले ही स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी कम करने का दबाव है, लेकिन कई राज्य संभावित राजस्व हानि को लेकर चिंतित हैं। केंद्र और राज्य के अधिकारियों वाली जीएसटी फिटमेंट कमेटी किसी समाधान पर सहमत नहीं हो पाई है। अप्रैल 2021 से मार्च 2024 के बीच केंद्र और राज्यों ने स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम से 21,000 करोड़ का जीएसटी एकत्र किया।

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