प्रतिबंधित जम्मू-कश्मीर समूह शाह के श्रीनगर दौरे से पहले केंद्र से कर रहा बातचीत
श्रीनगर। जम्मू कश्मीर के प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) ने कहा है कि वह केंद्र के साथ बातचीत कर रहा है और उसने जम्मू-कश्मीर में इस्लामी संगठन पर प्रतिबंध हटने पर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। जेईआई का यह बयान गृह मंत्री अमित शाह के आज गुरुवार शाम श्रीनगर दौरे से पहले आया है। बता दें कि 2019 में आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत जमात-ए-इस्लामी को गैरकानूनी संगठन के तौर पर प्रतिबंधित कर दिया गया था। जमात-ए-इस्लामी को कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन के पीछे की प्रेरक शक्ति और आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के वैचारिक संरक्षक के तौर पर देखा जाता था।
शाह श्रीनगर में कई प्रतिनिधिमंडलों से मिल रहे हैं और इस बात की चर्चा है कि क्या जमात का कोई प्रतिनिधिमंडल भी गृह मंत्री से मुलाकात करेगा। बताया जा रहा है कि श्रीनगर यात्रा के दौरान जमात नेताओं और गृह मंत्री के बीच बैठक की कोई योजना नहीं है। समूह के साथ कुछ स्तर पर बातचीत चल रही है, लेकिन गृह मंत्री के साथ ऐसी कोई बैठक तय नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ राजनीतिक समूहों के नेता शाह से मिलेंगे और वह घाटी में राजनीतिक स्थिति की समीक्षा करेंगे।
जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ नेता गुलाम कादिर वानी ने कहा कि अगर केंद्र सरकार प्रतिबंध हटाती है तो पार्टी चुनावों में भाग लेना चाहती है। वानी ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने के फैसले को जमात की मजलिस-ए-शूरा का समर्थन प्राप्त है, जो इस्लामी समूह की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है। वानी ने कहा, हमें मजलिस-ए-शूरा का समर्थन प्राप्त है। शूरा ने निर्णय ले लिया है। जमात एक विचारधारा है और हम जमात को बहाल करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि जमात पर प्रतिबंध हटाया जाए और इसके लिए हम केंद्र के साथ बातचीत कर रहे हैं।
शाह ने कहा था कि जमात-ए-इस्लामी और हुर्रियत कांफ्रेंस, जो पहले संविधान में विश्वास नहीं रखते थे ने श्रीनगर में मतदान किया है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध हटाने की मांग की है क्योंकि संगठन ने कहा है कि वह चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ने गृह मंत्री से श्रीनगर दौरे से एक दिन पहले प्रतिबंध हटाने की अपील की है। अब्दुल्ला ने कहा कि जमात को चुनावों में अन्य पार्टियों की गुप्त रूप से मदद करने के बजाय सीधे चुनाव लड़ना चाहिए, जैसा कि वे पिछले चुनावों में करते रहे हैं। जमात के रुख में बड़ा बदलाव, अलगाववादी विचारधारा को त्यागना और मुख्यधारा की राजनीति को अपनाना, आम चुनावों के मध्य में केंद्र सरकार के लिए एक बड़ी सफलता है।