पूजा खेडकर के बाद अब विवादों में आई आईएएस अफसर स्मिता सभरवाल
हैदराबाद। ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर के चयन को लेकर उठा विवाद का तूफान अभी थमा नहीं था कि एक और वरिष्ठ नौकरशाह ने सिविल सेवाओं में दिव्यांगों के लिए आरक्षण की जरूरत पर सवाल उठाया है। तेलंगाना वित्त आयोग की सदस्य सचिव स्मिता सभरवाल ने कहा कि जमीनी काम की मांग के कारण दिव्यांगों के लिए नौकरी करना कठिन हो जाता है।
स्मिता सभरवाल ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा, क्या कोई एयरलाइन दिव्यांग को पायलट के काम पर रखती है? या आप दिव्यांग सर्जन पर भरोसा करेंगे। 2000 में तेलंगाना कैडर से आईएएस अधिकारी सभरवाल ने कहा, आईएएस (आईएएस/आईपीएस/आईएफओएस) की एक फील्ड-जॉब वर्क है, लंबे समय तक काम करने वाले घंटे, लोगों की शिकायतों को सीधे सुनना है-जिसके लिए फिजिकल फिटनेस की जरूरत होती है। इस प्रीमियर सेवा को पहले स्थान पर इस कोटे की आवश्यकता क्यों है? सभरवाल की पोस्ट पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आई हैं, एक यूजर ने आईएएस की बात से इत्तिफाक न रखते हुए उन दिव्यांग अधिकारियों का उदाहरण रखा, जिन्होंने अपने क्षेत्र में देश के लिए अहम योगदान दिया है।
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, यह एक ऐसा दयनीय और बेकार दृष्टिकोण है। यह देखना दिलचस्प है कि नौकरशाह अपने सीमित विचारों और अपने विशेषाधिकार को कैसे दिखा रहे हैं। एक पोस्ट में चतुर्वेदी ने कहा, मैंने नौकरशाहों को ईडब्ल्यूएस/नॉन क्रीमी लेयर या दिव्यांगता जैसे कोटे के दुरुपयोग की आलोचना करते नहीं देखा है और न ही सिस्टम में घुसने की, बल्कि विविधता और समावेश को बढ़ावा देने वाले आरक्षण को खत्म करने की आलोचना करते देखा है। मुझे नहीं पता कि सेवा में बिताए गए वर्षों की संख्या के बारे में आपका कहना आपके मुद्दे से कैसे प्रासंगिक है। फिर भी धन्यवाद। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील करुणा नंदी ने कहा, मुझे आश्चर्य है कि एक आईएएस अधिकारी दिव्यांगता के बारे में इतना अनभिज्ञ हो सकता है। अधिकांश दिव्यागों की सहनशक्ति या बुद्धिमत्ता पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन यह पोस्ट दिखाता है कि ज्ञान और विविधता की बहुत आवश्यकता है।
करुणा नंदी के ट्वीट पर जवाब देते हुए स्मिता सभरवाल ने लिखा, मैडम, मैं नौकरी की जरूरतों से पूरी तरह वाकिफ हूं। यहां मुद्दा जमीनी नौकरी के लिए उपयुक्तता का है। साथ ही, मेरा दृढ़ विश्वास है कि सरकार के भीतर अन्य सेवाएं जैसे डेस्क/थिंक-टैंक प्रकृति अच्छी तरह से अनुकूल है। कृपया निष्कर्ष पर न पहुंचें। कानूनी ढांचा समानता के अधिकारों की समग्र सुरक्षा के लिए है। इस पर कोई बहस नहीं है।
उधर, एनसीपीईडीपी के ट्रस्टी अरविंद गुप्ता ने स्मिता के एक्स पोस्ट पर कहा, ‘@ncpedp_india के ट्रस्टी के रूप में, हम दिव्यांग लोगों की ओर से किए गए हजारों अच्छे परिणाम देखते हैं, जो कई मायनों में प्रेरणादायक है। उन्होंने कहा, एनसीपीईडीपी ने विकलांग लोगों को यूपीएससी में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और हम उन्हें जागरूकता की कमी के कारण प्रतिदिन संघर्ष करते हुए देखते हैं। यदि एक सार्वभौमिक पारिस्थितिकीय तंत्र दिया जाए, तो दिव्यांग, साधारण व्यक्ति समान आधार पर मुख्यधारा के समाज में योगदान दे सकते हैं। अब समय आ गया है कि हम 20 करोड़ भारतीयों को बेहतर भारत में योगदान देने से रोकने के बजाय खुद को शिक्षित करें।